Saturday, 9 September 2017

छोटी छोटी बातें

तुम्हारी अदाओं की खबर ना तुम्हें है, और ना ही उन्हे जो मदहोश ,
मेहफिल के गुलाम , अपने आप को समझ रहे हैं|
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शायरों के गुलदसते का काँटा ही बन सके तो क्या हुआ ,
दरद के अल्फाज़ की मेहक भी तो रूह को छूह जाति है|
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आँखें हमे चूमती हुई कहीं घड़ी के काँटों पे जाकर रुकती है ,
जाइए जनाब , और आना किसी और दिन , ऐसे ही छिप छिप के ,
मोहब्बत करने का हक़ तो कमज़ोर को भी है.

ऐसा ना कहना कि कभी रोका ही नही,
गुनाह नही हमारा इश्क़ , कि कैदी ठहाराय आप को ,
फिर भी , आना , बस एक और दिन , आज़ाद कर देंगे आपकी हर साँस को|