मेहफिल के गुलाम , अपने आप को समझ रहे हैं|
दरद के अल्फाज़ की मेहक भी तो रूह को छूह जाति है|
जाइए जनाब , और आना किसी और दिन , ऐसे ही छिप छिप के ,
मोहब्बत करने का हक़ तो कमज़ोर को भी है.
ऐसा ना कहना कि कभी रोका ही नही,
गुनाह नही हमारा इश्क़ , कि कैदी ठहाराय आप को ,
फिर भी , आना , बस एक और दिन , आज़ाद कर देंगे आपकी हर साँस को|